आज ही वह शुभ दिन है
एक नन्हीं सी परी,
इंतजार था, जिसका बरसों से,
पलकें मूॅद कर अपनी,
सोई थी बादलों की गोद में,
न जाने कौन सी सूर्य की किरण पड़ी उस पर,
अलसाई सी पलकें खोल कर झाॅका जो उसने,
पाया अपने इंतजार में खड़े,
अपने स्वजनों और परिजनों को,
पल में ही आ सिमटी माॅ की कोख में,
साकार कर दिया सपना,
लिपट कर ऑचल से,
आज ही वह शुभ दिन है,
परी ने खोली थी पलकें,
आइये मनायेंगे,
इस दिन को,
हम सब मिल के।