क्यूॅ अभिमान करें इस जीवन का
एक साॅस आती है,एक साॅस जाती है,
इन्हीं आती जाती साॅसों के दरमियान,
न जाने कितने लोगों की साॅस टूट जाती है।
क्यूॅ अभिमान करें इस जीवन का,
जहाॅ साॅसो पर भी अधिकार नहीं,
यह तो प्रभू की अनुकम्पा है,
जहाॅ हमारा कोई सरोकार नहीं।
जिन्दगी
कहने को तो यह जिन्दगी हमारी है ,
लेकिन इस पर हमारा ही बस नहीं है,
यह बस अपने हिसाब से चलती जाती है।