मैं भी आयी हूॅ शरण में तेरी
न कोई आरती, न कोई पूजा,
ना ही माथे पर है कोई चंदन का टीका,
बस आपके ही श्री चरणों में प्रभू,
मेरा मन है रीझा।
मुझे स्वीकार करो, या लौटा दो प्रभू,
यह आपका अधिकार है,
मेरा मस्तक तो वहीं झुका है,
जहाॅ आपका दरबार है।
न जाने कितने पापी आते,
सबको पार उतारा है,
मैं भी आयी हूॅ शरण में तेरी,
बस तेरा ही एक सहारा है।