Thoughts on Indifference -Holding hands on Empathy in Hindi
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Thoughts on Indifference in Hindi / उदासीनता

अक्सर कहा जाता है कि साॅच को ऑच नहीं। सच को सात तालों में बंद कर दो या सात पर्दों में छुपा दो,किसी न किसी दिन वह बाहर आ ही जाता है। लेकिन एक सच यह भी है कि जब तक सच सबके सामने आ पाता है, तब तक तो पीड़ित व्यक्ति इतना हताश , निराश हो जाता है कि फिर सच सामने आये या न आये उसको फर्क नहीं पड़ता।

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