थाल सजा कर चल दिये प्रभू के दीवाने
थाल सजा कर चल दिये प्रभू के दीवाने,
अपने अपने इष्ट को रिझाने, फल ,
फूल, दिया बाती,अक्षत, रोली, चन्दन
फिर भी कुछ रह गयी है कमी जिसके तो प्रभू भी हैं दीवाने।
सूने नयनों से निहार कर पूछते हैं प्रभू,
मिष्ठान, पकवान तो बहुत है भोले भक्त,
थोड़ी सी श्रद्धा भी सजा लेते थाल में, तो मैं निहाल हो जाता।
कृष्ण भजन
इतने सारे पकवान क्यों बना रही हो,
क्या अपने कान्हा को रिझा रही हो,
कान्हा तो नहीं रीझने वाला इन पकवानो पर,
वो तो मस्त है वृन्दावन में कदम्ब की डालों पर ,
उसे रिझाना है तो भक्ति भाव से रिझा,
पिया था जैसे मीरा ने विष का प्याला,
तू भी तो पी के दिखा।
आराधना
करती हूॅ आराधना ईश तेरी,
कर लेना स्वीकार तुम,
श्रध्दा सुमन चढ़ाती हूॅ मैं,
कर लेना अंगीकार तुम।
कण कण में विराजे हो आप प्रभू,
मैं तो छोटी सी कठपुतली हूॅ,
राग, द्वेष मन मैल भरा है,
तन को विषयों ने घेरा है।
जग में तुमने रीत बनाई,
तुम्हें पुकारे जो भी कन्हाई,
थाम लेते तुम उसका हाथ,
नहीं छोड़ते कभी फिर साथ।
मेरी भी अरजी सुन लो,
तुम्हें पुकारूॅ मैं भी नाथ
छोड़ कर जब दुनियाॅ को जाऊॅ,
चरणों में तुम्हारे जगह मैं पाऊॅ।