दुनियाॅ रंग रंगीली
दुनियाॅ रंग रंगीली रे साहब,
दुनियाॅ रंग रंगीली,
कहीं पर घिरते गम के बादल,
कहीं गूॅजे हॅसी ठिठोली।
कहीं पर उठती अर्थी रे साहब,
कहीं पर सजती डोली।
कहीं बिलखते भूखे बच्चे,
कहीं भर थाली झूठन छोड़ी।
कहीं मजबूरी में नहीं तन पर कपड़े,
कहीं तन बस फैशन में हैं उघड़े।
कहीं पर मिनरल वाटर चलता ,
कहीं सरकारी नल को तरसे।
कहीं नंगे पैरों चल पड़ते छाले,
कहीं ब्राॅडेड जूते भी जाॅय उछाले।
कहीं बचपन अनाथालय में पलते
कहीं धनाढ्य धनिक वॄद्धाश्रम की राह पकड़ते।
अपने अपने करम रे साहब,
कौन किसको समझाये , कौन समझे।
दुनियाॅ रंग रगीली रे साहब,
दुनियाॅ रंग रंगीली।