Katu Vachan in Hindi / कटु वचन

Katu Vachan in Hindi

नीलकंठ

पौराणिक काल में सागर मंथन से निकले विष को शिव ने जगत कल्याण हेतु स्वेच्छा से अपने कंठ में स्थान दिया और नीलकंठ कहलाये। आज के समाज मंथन से निकला विष मानव की आत्मा, उसकी अंतरात्मा को जख्म दे रहा है, वह निरीह प्राणी कहाॅ जाय।


मतलबी दुनियाँ

आज की मतलबी दुनियाँ में किसी को अपनी गल्तियाॅ, अपनी कमियाॅ तो दिखती ही नहीं, या यूॅ कहा जाय कि वह अपनी कमियों को नजरअंदाज कर दूसरों पर दोष मढ़ देता है। व्यवहार में रूखापन, मन में दूरियाॅ तो वह खुद ही लाता है और दोष परिस्थितियों को देता है, मॅहगाई का रोना रोता है। यह सच है कि मॅहगाई की वजह से त्यौहार फीके नहीं होते, बल्कि आज इन्सान के मन से ही मिठास गायब हो गयी है।


आज की पीढ़ी की मजबूरी

बारिशें तो पहले भी होती थीं और बारिशें आज भी होती हैं, फर्क बस इतना है कि पहले छोटे छोटे गड्डों में भरने वाले पानी में,और बेमतलब सड़कों पर बह जाने वाले पानी के साथ छोटी छोटी कागज की कश्तियाॅ भी बहा करती करती थीं, जो बरसात के आनन्द को बढ़ा देती थी, इन सबके साथ बच्चों की खुशी और तालियों की थपथपाहट, गर्म चाय की चुस्कियाॅ माहौल को खुशनुमा बना देती थी। आज की पीढ़ी इस आनन्द से वंचित है, बच्चे अपने मोबाइल पर गेम खेलने में व्यस्त हैं और बड़े अपने कमप्यूटर पर व्यस्त है। यही तो है आज का विकास, और प्रकृति के आनन्द से दूरी, बस यही है आज की पीढ़ी की मजबूरी।


कड़वे सच

कुछ कड़वे सच
कहते हैं घर घर चूल्हे माटी के
पर आज तो हर घर में गैस का चूल्हा
होते हुए भी घर परिवारों की हालत
माटी के चूल्हों से ज्यादा बदतर हो गयी है।


Author: ASHA

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