*मेरी माॅ*
मेरी माँ कहीं खो गयी,
दूर कहीं बादलों की गोद में जाकर सो गयी,
थक गयी थी,इस दुनियाँ की भीड़ में
चलते -चलते, इसलिये खामोशी की चादर ओढ़ कर ,
सदा के लिये खामोश हो गयी।
चिर निद्रा में लीन मेरी माँ तुझे जगाऊँ कैसे,
याद आ रही है तेरी, तेरे पास आऊँ कैसे,
बदल लिया है तूने अपना ठिकाना,
तेरे ठिकाने का पता, पाऊँ कैसे।
ढूँढ भी लूँ तेरा ठिकाना,
तो क्या, वहाँ तक न रेलगाड़ी जाती है,
और न जाती है बस,
वहाॅ तक जाने में तो,
हवाई जहाज भी है बेबस।
क्या करूँ, इस छटपटाते मन को कैसे शाँत करूँ,
तेरी ममता की शीतल छाया फिर कैसे प्राप्त करूँ,
याद आती है तेरी, मन में उठती है इक टीस,
इस टीस की चुभन को मैं कैसे शाँत करूँ।
मेरी माँ मै तुझे याद करूँ।
कहीं से ठंडी हवा का झोंका बन के आजा।
मेरे गालों को प्यार से सहला जा,
या फिर मीठी सी थपकी देकर मुझे भी गहरी नींद सुला जा।
जन्म लूँ जब भी,
तेरी ही गोद मैं पाऊँ,
तू ही मेरी माँ बने,
मैं तेरी ही बेटी कहलाऊँ।
आपको श्रद्धा पूर्वक नमन
रूकता नहीं है कोई भी काम,
किसी के दूर जाने से,
आती नहीं है कोई कमी,
कभी किसी खजाने में,
फिर भी ये दिल जब ढूढॅता है जब कभी उन्हें,
ऑखे डबडबा जाती हैं अनजाने में,
फिर शुरू होता है सफर,
उन बीते हुए लम्हों का,
कुछ सुखद यादों का, एहसासों का,
छलक जाती हैं कुछ बूॅदे,
और गीला कर जाती हैं हमारे गालों को।
आपको श्रद्धा पूर्वक नमन।
श्रद्धांजलि
जाने से किसी के यह जहाॅन नहीं रूकता,
सब काम समय पर हो जाते है,
कोई काम नहीं रूकता,
पर जाने वाले एक बार पलट कर तो देख ले,
तेरी कमी कभी कोई पूरी नहीं कर सकता।
विदा हो गये
खामोशी की चादर ओढ़ कर,
न जाने कहाॅ सो गये तुम,
भीड़ के इस रेले में कहाॅ गुम हो गये तुम,
पुकारते रहे हम सब तुमको,
तुमने एक न सुनी,
बस बंद की पलकें, और विदा हो गये।