Thoughts on Indifference in Hindi / उदासीनता

Thoughts on Indifference -holding Hands on Empathy in Hindi

साॅच को ऑच नहीं

अक्सर कहा जाता है कि साॅच को ऑच नहीं।
सच को सात तालों में बंद कर दो या सात पर्दों में छुपा दो,
किसी न किसी दिन वह बाहर आ ही जाता है।
लेकिन एक सच यह भी है कि जब तक सच सबके सामने आ पाता है,
तब तक तो पीड़ित व्यक्ति इतना हताश,
निराश हो जाता है कि फिर सच सामने आये या न आये उसको फर्क नहीं पड़ता।
यह भी हो सकता है कि उसका जीवन ही न रहे।
यह तो जिन्दगी है कोई फिल्म नहीं कि जहाॅ फिल्मकार को ढाई घन्टे में ही सारे दृष्य दिखा कर फिल्म समाप्त करनी है।
कभी कभी तो झूठ इतना बलशाली होता है कि सच उसके नीचे दब कर ही दम तोड़ देता है।


Author: ASHA

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